संकेत दिया था शायद ।
चेहरे क़ी ये मासूमियत , देखि थी न मैने कभी,
जिन्दादिली क़ी सक्शिय्त का, लाचार सा मासूम बना था चेहरा,
समझ न पाए हम सब ईशारा, संकेत दिया था जो शायद।
अब तो बस पछतावा , कुछ यादों का साया,
बने रहियेगा स्मृति में जब तक हमारा ये jiwnn haen ॥
अमृत