Monday 13 April 2009

क्या जूता संस्कृति भविष्य है ?

अभी हाल ही में पत्रकारों/सेवा निवृत अध्यापक ने विश्व सभ्यता का वह स्वरूप दिखाया जिस से सिर शर्म से झुक जाता है , क्या समाज के सब से बुद्दी जीवी माने जाने वाले तथा लोकतान्त्रिक प्रणाली का चौथा स्तम्भ मिडिया के प्रतिनिधियों और राष्ट्र को बच्चों के रूप में भविष्य देने वालों का यह कृत्य अपनी मानसिकता और भावनाओं को प्रकट करने का सुसंस्कृत तरीका है ? क्या समाज का हर वर्ग अपनी बात मनवाने या अपने आक्रोश को दर्शाने के लिए अब गाँधीगिरी को छोड़ जूतागिरी का रास्ता भविष्य में अपनाएगा, यह प्रश्न आज समाज के सामने है ? जिन लोगों ने यह कृत्य कर जनप्रतिनिधियों और राष्ट्र के प्रमुख व्यक्तियों का अपमान किया है उन्हें समाजिक तथा न्यायिक स्तर पर सजा आवश्य मिलनी चाहिए तथा इस तरह के दहशी चरित्र वालों का समाजिक तिरस्कार होना चाहिए , ताकि इस तरह के दुसाहस की पुनरावृति न हो । श्री बुश , श्री चितम्बरम या श्री जिंदल ने भले ही बडे दिल या कदावर होने का परिचय देते हुए इन्हें सार्वजनिक तौर पर माफ कर दिया हो किंतु मेरा मानना है, यदि माफी की यही निति अपनाई गई तो एक दिन हालात बेकाबू हो जायेंगे और बात मनवाने का या अपनी झुंझलाहट निकालने की जूता उपसंस्कृति का जन्म होगा और एक नये आतंक से व्यवस्था को दो चार होना पडेगा। आज इन नेताओं पर हुए हमलों को हँसी-मजाक या राजनैतिक स्वार्थ के चलते इसके विरोध के लिए हम एक मंच पर इक्कठे नहीं हो रहें हैं, यह हमारे राष्ट्र के संचालकों की भीरूता या मौका परस्त राजनीती का छदम खेल हो या वोटों की दलगत राजनीति के चलते एक दूसरे को मात देने की बिसात हो, किंतु भविष्य में हमारी यही लापरवाही और स्वार्थ प्ररता हमारी सामाजिक व्यवस्था और कानून में नासूर बन कर दर्द देगी इसमें संदेह नहीं होना चाहिए । अतः समाज के हर प्रबुद्द जनों को आगे आकर इस तरह की मनोवृति रखने वालों पर कड़ी नजर रख कर, राम, रहीम, यीशू तथा गुरु -नानक की इस पवित्र भारत भूमि की स्वस्थ परम्परा को सजीव रखना होगामेरी मिडिया से भी करबद्द प्रार्थना रहेगी की इस तरह के दुश्चारित्रों को अपनी प्रबुद्द गली में स्थान न दें । जनता की या सामुदाये विशेष की भावनाओं से खेल कर ख़ुद को हीरो साबित करना अच्छी परम्परा नहीं है , भारत में केवल भारतीय रहते हैं जो हर जाती , धर्म , रंग , वर्ण और सामुदाये के अटूट गुलदस्ते की अखंड डालियाँ हैं जिसे किसी भी सुनामी से क्षत -विक्षत नहीं किया जा सकता इसे हर विघटनकारी मानसिकता रखने वाले को स्मरण रखना चाहिए ।
अमृत कुमार शर्मा