पुलिस विभाग के कुछ प्रारंभिक यादगार पल
================================
31 मेई 2018 को मैं हिमाचल प्रदेश पुलिस विभाग से अपने व्यवसायक जीवन के 33 वर्ष 5 महीनें और 21 दिनों का सफर पूरा करके सेवानिवृत होकर सकुशल घर आया हूँ जिस के लिए मैं ईश्वर का कोटि- कोटि धन्यवाद करता हूँ कि जिसने मुझे कई संघर्षों के बाद सही सलामत मेरे पैतृक गांव किंगल वापिस कर दिया।
अपने सेवा काल में मैंने अपने कर्तव्यों को पूरी ईमानदारी, निष्ठां , निष्पक्षता और निर्भयता से निभाया इसकी मुझे आत्मीय प्रसन्नता है। मैने अपनी सेवाएं प्रथम वाहिनी जुन्गा जिला शिमला से प्रारम्भ की और विभाग से पहला सम्मान जो उस वक्त मात्र 25 रुपए का नकद पुरस्कार मय प्रमाणपत्र तात्कालिक पुलिस उप - महानिरीक्षक सशस्त्र एवं प्रशिक्षण श्री अमरीक सिंह जी ने मेरे सीनियर बैच के दीक्षांत समारोह के अवसर पर मेरे द्वारा लिखित , निर्देशित और अभिनीत नाटक { हम सब एक हैं} के लिए दिया था। उस वक्त मुझे विभाग में केवल 2 महीने ही हुए थे और अभी मूल भूत प्रशिक्षण के लिए भी नहीं गया था। उस वक्त इस इनाम की एहमियत का अंदाजा नहीं था किन्तु ये एक सिपाही को उसकी उन्नति के लिए कितना उपयोगी होता है इसका पता बाद में चला जब इस बारे उस्तादों ने विस्तार से समझाया , फिर ये सिलसिला निरंतर चलता रहा जो विभाग में अधकारियों की नजर में एक अच्छे सिपाही के रूप में पहचान बनाने में मददगार हुआ।
इसके विपरीत एक मजेदार वाक्य भी इस इनाम के मिलने के 10 -11 दिनों के बाद हुआ हम सब नई भर्ती के जवान लोकसभा चुनाव के सिलसिले में ड्यूटी हेतु निरमंड गए हुए थे वहा मैं रिजर्व में था तो मैंने वहां के इंचार्ज D.S.P साहब से अपने घर किंगल के लिए एक रात के लिए अनुमति मांगी जो उन्होने अनुमति दे दी और कहा की कल बटालियन की बस में अपने घर से जुन्गा चले जाना। निरमंड जाते समय रात को सारी फ़ोर्स का ठहरने का इंतजाम मेरे पिता जी ने किंगल में कर दिया था और खाने- पिने का भी पूरा प्रबंध किया हुआ था। ड्राइवर और उस्तादों को मेरे घर का पता न हो ये सवाल नहीं था किन्तु मैंने पुलिस में देखा है कि कुछ मानसिक संकीर्णतायेँ पीछा नहीं छोड़ती और परिणाम सवरूप उन्होंने मुझे मेरे घर से नहीं लिया और पुलिस बस नहीं रोकी। मैं उसीदिन सरकारी परिवहन की बस में चला गया लेकिन पहुंचने में देर हो गई नतीजा मेरी गैरहाजरी दर्जकर दी गई, ये सब निचले स्तर पर हुआ इस बात का भान उच्च अधिकारीयों तक नहीं था और मुझे कुछ और साथियों के साथ मुंशी ने पिठू परेड करवा दी मेरे साथ इस सजा में एक साथी रमा नन्द था जो तत्कालकिक IG /CID श्री RR वर्मा जी का भांजा था. हमे केवल इसीलिए ये सजा मिली क्यूँकि मुझे DIG साहब से 10 दिन पहले इनाम मिला था और रामानंद IG /CID श्री RR वर्मा जी का भांजा था।
जब हम सजा टहल रहे थे तो उस मंजर को इंचार्ज D.S.P साहब श्री राजिंदर कंवर ने देख लिया और हमे बुला लिया अब तो खेर नहीं ये सोचकर हम सहमे से उनके पास अपराधी से खड़े हो गए , ये क्या यहाँ तो दृश्य ही अलग था हमे झाड़ने के बजाए उस मुंशी की दुर्गति हो रही थी और D.S.P साहब मेरी तरफ मुखातिव हो कर कह रहे थे { तू जनता है इसको कल ही इसे डी.आई. जी. साहब ने सर्टिफिकेट देकर नवाजा है एक-दो घंटे अगर लेट हो गया तो क्या पहाड़ टूट गया था और फिर मुझे बताये बगैर तू खुद लाटसाहब बन गया } साहब ने उस मुंशी वो हालत कर दी कि अगर वो आज भी मुझे देखता होगा तो मन ही मन मुझे गालि जरूर देता होगा क्यूँकि की D.S.P साहब उसकी मां बहन एक के दी थी।
एक शख्स और थे वो उस वक्त ASI हुआ करते थे नाम था श्री वेद प्रकाश वो इस मंजर को देख रहे थे वो पुलिस प्रशिक्षण स्कुल जुन्गा में बतौर प्रशिक्षक तैनात थे रात को हम चोरी- छिपे बाजार घूमने या किसी सामान को लेन के लिए अक्सर जाया करते थे तो वो साहब बाजार में मिल गए ,वो थोड़ी लगाया करते थे उन्होने मुझे पकड़ा और एक रसीद कर दिया। अपने गाल पर लगे तमाचे को अभी सेहला ही रहा था कि वो मुझ से लिपट कर रोने लगे उन्होने कहा { छोटे भाई आज तू पिठू नहीं टहल रहा था तेरा बड़ा भाई वेद टहल रहा था और उन्होने सारी साजिस का भांडा फोड़ कर दिया और मुझे चापलूसों से बच कर चलने की नसीहत दे डाली और मैंने उनकी नसीहत को आत्मसात कर लिया। श्री वेद साहब मूलतः जिला काँगड़ा के रहने वाले थे और एक आल राउंडर पुलिस अफसर थे आज वो हमारे बीच नहीं है. लेकिन उनके दौर के विभाग का हर छोटा बड़ा अधिकारी कर्मचारी उनकी एहमियत को बखूबी जानते थे और उनका आदर करते थे मैं भी उनको हमेशा अपना बड़ा भाई और मार्गदर्शक मानता हूँ।
इस छोटे से प्रकरण का पता जब प्रशिक्षण स्कूल के पुलिस अधीक्षक /प्रिंसिपल साहब श्री राजिंदर सिंह जी को लगा तो उन्होने मुझे बुलाकर सहानुभति प्रकट की और उस मुंशी की क्लास ली ये मामला बड़ा हाई प्रोफाइल हुआ लेकिन इस प्रकरण से विभाग में मेरी प्रतिष्ठा कुछ ज्यादा बढ़ गई लेकिन मैंने अपना काम, प्रशिक्षण निष्ठां से लिया और कभी भी किसी को अपने ऊपर लांछन लगाने या शिकायत का मौका नहीं दिया।
मैंने विभाग में हर कार्यक्रमों में, वो चाहे वाहिनी स्तर कर रहे हो, जिला स्तर के या राज्य स्तर के हो या फिर राष्ट्रिय स्तर के हो बखूबी बतौर कार्यक्रम निर्देशक , संचालक , एंकर और कमेंट्रेटर के रूप में हिमाचल में निभाय है जिस में 15 अप्रैल 25 /26 जनवरी के आयोजनों में अपनी आवाज दी है जो मेरे लिए गर्व की बात है / हिमाचल प्रदेश क्रिकेट ग्राउंड धर्मशाला में क्रिकट कमेंट्री देने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ है जिस के लिए पुलिस ऑफिसर्स और तात्कालिक मुख्यमंत्री श्री प्रेम कुमार धूमल जी का आभार व्यक्त करता हूँ।
मैने पुलिस प्रशिक्षण स्कूल जुन्गा और पुलिस प्रशिक्षण महाविद्यालय डरोह में बतौर प्रशिक्षक व् विभाग की विभिन्न मदों पर कुशलता से काम किया है जिस की प्रशंसा भी हुई और पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया।
मैंने अन्वेषण अधिकारी , थाना प्रभारी, सुरक्षा प्रभारी जिला काँगड़ा , पुलिस जिला बद्दी और राज्य फोरेंसिक निदेशालय जुन्गा में प्रभारी क्राइम ब्रांच कार्य किया है तथा मुख्यमंत्री आवास ओक ओवर शिमल में भी गार्द इंचार्ज के रूप में कार्यरत रहा हूँ।
मैंने अपने सेवा काल में कभी भी उच्च अधिकारीयों की आज्ञा की अवहेलना नहीं की न ही अपने आधीन कर्मचारियों को कभी सताया डराया या धमकाया , अपितु बड़ो का आदर किया और छोटे से स्नेह। यही कारण रहा की अपनी विभागीय सेवाएं जहाँ निष्ठां, ईमानदारी,निष्पक्षता ,निर्भयता से कीवही सेवा काल में पुलिस विभाग में आनंद भी किया , मै हमेशा सच्चाई के पथ पर चला कभी भी कहीं कोई अनैतिक समझौता नहीं किया न किसी के आगे झुका न राजनेताओं का सहारा लिया केवल अपनी बात अपने उच्च अधिकारीयों के समक्ष रखी वही से हर छोटी -बड़ी समस्यायों का निदान किया।
मै अपने सेवा से अति प्रसन्न हूँ और ये मानता हूँ कि ईश्वर ने मुझे मेरी योग्यता और औकात से ज्यादा ही दिया।
और भी विभाग से जुडी कई रोचक घटनायें हैं उनका उल्लेख करता रहूंगा।
अमृत कुमार शर्मा
निरीक्षक हिमाचल पुकीस { सेवानिवृत}
किंगल , जिला शमला (हिमाचल)
================================
31 मेई 2018 को मैं हिमाचल प्रदेश पुलिस विभाग से अपने व्यवसायक जीवन के 33 वर्ष 5 महीनें और 21 दिनों का सफर पूरा करके सेवानिवृत होकर सकुशल घर आया हूँ जिस के लिए मैं ईश्वर का कोटि- कोटि धन्यवाद करता हूँ कि जिसने मुझे कई संघर्षों के बाद सही सलामत मेरे पैतृक गांव किंगल वापिस कर दिया।
अपने सेवा काल में मैंने अपने कर्तव्यों को पूरी ईमानदारी, निष्ठां , निष्पक्षता और निर्भयता से निभाया इसकी मुझे आत्मीय प्रसन्नता है। मैने अपनी सेवाएं प्रथम वाहिनी जुन्गा जिला शिमला से प्रारम्भ की और विभाग से पहला सम्मान जो उस वक्त मात्र 25 रुपए का नकद पुरस्कार मय प्रमाणपत्र तात्कालिक पुलिस उप - महानिरीक्षक सशस्त्र एवं प्रशिक्षण श्री अमरीक सिंह जी ने मेरे सीनियर बैच के दीक्षांत समारोह के अवसर पर मेरे द्वारा लिखित , निर्देशित और अभिनीत नाटक { हम सब एक हैं} के लिए दिया था। उस वक्त मुझे विभाग में केवल 2 महीने ही हुए थे और अभी मूल भूत प्रशिक्षण के लिए भी नहीं गया था। उस वक्त इस इनाम की एहमियत का अंदाजा नहीं था किन्तु ये एक सिपाही को उसकी उन्नति के लिए कितना उपयोगी होता है इसका पता बाद में चला जब इस बारे उस्तादों ने विस्तार से समझाया , फिर ये सिलसिला निरंतर चलता रहा जो विभाग में अधकारियों की नजर में एक अच्छे सिपाही के रूप में पहचान बनाने में मददगार हुआ।
इसके विपरीत एक मजेदार वाक्य भी इस इनाम के मिलने के 10 -11 दिनों के बाद हुआ हम सब नई भर्ती के जवान लोकसभा चुनाव के सिलसिले में ड्यूटी हेतु निरमंड गए हुए थे वहा मैं रिजर्व में था तो मैंने वहां के इंचार्ज D.S.P साहब से अपने घर किंगल के लिए एक रात के लिए अनुमति मांगी जो उन्होने अनुमति दे दी और कहा की कल बटालियन की बस में अपने घर से जुन्गा चले जाना। निरमंड जाते समय रात को सारी फ़ोर्स का ठहरने का इंतजाम मेरे पिता जी ने किंगल में कर दिया था और खाने- पिने का भी पूरा प्रबंध किया हुआ था। ड्राइवर और उस्तादों को मेरे घर का पता न हो ये सवाल नहीं था किन्तु मैंने पुलिस में देखा है कि कुछ मानसिक संकीर्णतायेँ पीछा नहीं छोड़ती और परिणाम सवरूप उन्होंने मुझे मेरे घर से नहीं लिया और पुलिस बस नहीं रोकी। मैं उसीदिन सरकारी परिवहन की बस में चला गया लेकिन पहुंचने में देर हो गई नतीजा मेरी गैरहाजरी दर्जकर दी गई, ये सब निचले स्तर पर हुआ इस बात का भान उच्च अधिकारीयों तक नहीं था और मुझे कुछ और साथियों के साथ मुंशी ने पिठू परेड करवा दी मेरे साथ इस सजा में एक साथी रमा नन्द था जो तत्कालकिक IG /CID श्री RR वर्मा जी का भांजा था. हमे केवल इसीलिए ये सजा मिली क्यूँकि मुझे DIG साहब से 10 दिन पहले इनाम मिला था और रामानंद IG /CID श्री RR वर्मा जी का भांजा था।
जब हम सजा टहल रहे थे तो उस मंजर को इंचार्ज D.S.P साहब श्री राजिंदर कंवर ने देख लिया और हमे बुला लिया अब तो खेर नहीं ये सोचकर हम सहमे से उनके पास अपराधी से खड़े हो गए , ये क्या यहाँ तो दृश्य ही अलग था हमे झाड़ने के बजाए उस मुंशी की दुर्गति हो रही थी और D.S.P साहब मेरी तरफ मुखातिव हो कर कह रहे थे { तू जनता है इसको कल ही इसे डी.आई. जी. साहब ने सर्टिफिकेट देकर नवाजा है एक-दो घंटे अगर लेट हो गया तो क्या पहाड़ टूट गया था और फिर मुझे बताये बगैर तू खुद लाटसाहब बन गया } साहब ने उस मुंशी वो हालत कर दी कि अगर वो आज भी मुझे देखता होगा तो मन ही मन मुझे गालि जरूर देता होगा क्यूँकि की D.S.P साहब उसकी मां बहन एक के दी थी।
एक शख्स और थे वो उस वक्त ASI हुआ करते थे नाम था श्री वेद प्रकाश वो इस मंजर को देख रहे थे वो पुलिस प्रशिक्षण स्कुल जुन्गा में बतौर प्रशिक्षक तैनात थे रात को हम चोरी- छिपे बाजार घूमने या किसी सामान को लेन के लिए अक्सर जाया करते थे तो वो साहब बाजार में मिल गए ,वो थोड़ी लगाया करते थे उन्होने मुझे पकड़ा और एक रसीद कर दिया। अपने गाल पर लगे तमाचे को अभी सेहला ही रहा था कि वो मुझ से लिपट कर रोने लगे उन्होने कहा { छोटे भाई आज तू पिठू नहीं टहल रहा था तेरा बड़ा भाई वेद टहल रहा था और उन्होने सारी साजिस का भांडा फोड़ कर दिया और मुझे चापलूसों से बच कर चलने की नसीहत दे डाली और मैंने उनकी नसीहत को आत्मसात कर लिया। श्री वेद साहब मूलतः जिला काँगड़ा के रहने वाले थे और एक आल राउंडर पुलिस अफसर थे आज वो हमारे बीच नहीं है. लेकिन उनके दौर के विभाग का हर छोटा बड़ा अधिकारी कर्मचारी उनकी एहमियत को बखूबी जानते थे और उनका आदर करते थे मैं भी उनको हमेशा अपना बड़ा भाई और मार्गदर्शक मानता हूँ।
इस छोटे से प्रकरण का पता जब प्रशिक्षण स्कूल के पुलिस अधीक्षक /प्रिंसिपल साहब श्री राजिंदर सिंह जी को लगा तो उन्होने मुझे बुलाकर सहानुभति प्रकट की और उस मुंशी की क्लास ली ये मामला बड़ा हाई प्रोफाइल हुआ लेकिन इस प्रकरण से विभाग में मेरी प्रतिष्ठा कुछ ज्यादा बढ़ गई लेकिन मैंने अपना काम, प्रशिक्षण निष्ठां से लिया और कभी भी किसी को अपने ऊपर लांछन लगाने या शिकायत का मौका नहीं दिया।
मैंने विभाग में हर कार्यक्रमों में, वो चाहे वाहिनी स्तर कर रहे हो, जिला स्तर के या राज्य स्तर के हो या फिर राष्ट्रिय स्तर के हो बखूबी बतौर कार्यक्रम निर्देशक , संचालक , एंकर और कमेंट्रेटर के रूप में हिमाचल में निभाय है जिस में 15 अप्रैल 25 /26 जनवरी के आयोजनों में अपनी आवाज दी है जो मेरे लिए गर्व की बात है / हिमाचल प्रदेश क्रिकेट ग्राउंड धर्मशाला में क्रिकट कमेंट्री देने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ है जिस के लिए पुलिस ऑफिसर्स और तात्कालिक मुख्यमंत्री श्री प्रेम कुमार धूमल जी का आभार व्यक्त करता हूँ।
मैने पुलिस प्रशिक्षण स्कूल जुन्गा और पुलिस प्रशिक्षण महाविद्यालय डरोह में बतौर प्रशिक्षक व् विभाग की विभिन्न मदों पर कुशलता से काम किया है जिस की प्रशंसा भी हुई और पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया।
मैंने अन्वेषण अधिकारी , थाना प्रभारी, सुरक्षा प्रभारी जिला काँगड़ा , पुलिस जिला बद्दी और राज्य फोरेंसिक निदेशालय जुन्गा में प्रभारी क्राइम ब्रांच कार्य किया है तथा मुख्यमंत्री आवास ओक ओवर शिमल में भी गार्द इंचार्ज के रूप में कार्यरत रहा हूँ।
मैंने अपने सेवा काल में कभी भी उच्च अधिकारीयों की आज्ञा की अवहेलना नहीं की न ही अपने आधीन कर्मचारियों को कभी सताया डराया या धमकाया , अपितु बड़ो का आदर किया और छोटे से स्नेह। यही कारण रहा की अपनी विभागीय सेवाएं जहाँ निष्ठां, ईमानदारी,निष्पक्षता ,निर्भयता से कीवही सेवा काल में पुलिस विभाग में आनंद भी किया , मै हमेशा सच्चाई के पथ पर चला कभी भी कहीं कोई अनैतिक समझौता नहीं किया न किसी के आगे झुका न राजनेताओं का सहारा लिया केवल अपनी बात अपने उच्च अधिकारीयों के समक्ष रखी वही से हर छोटी -बड़ी समस्यायों का निदान किया।
मै अपने सेवा से अति प्रसन्न हूँ और ये मानता हूँ कि ईश्वर ने मुझे मेरी योग्यता और औकात से ज्यादा ही दिया।
और भी विभाग से जुडी कई रोचक घटनायें हैं उनका उल्लेख करता रहूंगा।
अमृत कुमार शर्मा
निरीक्षक हिमाचल पुकीस { सेवानिवृत}
किंगल , जिला शमला (हिमाचल)